सोजन्य से - विकिपीडिया और अन्य अयोध्या के सूर्यवंशी राजा | |
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महाभारत पूर्व | मनु • इक्ष्वाकु • शशाद • ककुत्स्थ • अनेनस • पृथु • विश्वगाश्व आर्द्र • युवनाश्च • श्रावस्त • वृहदश्व • कुवलयाश्व • दृढ़ाश्व • प्रमोद • हर्यश्रव • निकुम्भ • संहताश्व • कृशाश्व • प्रसेनजित • युवनाश्च • मान्धातु • पुरुकुत्स • त्रसदस्यु • सम्भूत • अनरण्य • पृषदश्व • हर्यश्रव • वसुमनस • तृधन्वन • त्रैयारुण • त्रिशंकु • हरिश्चन्द्र• रोहित • हरित • चंचु • विजय • रुरुक • वृक • बाहु • सगर • असमज्जस • अंशुमन • दिलीप • भगीरथ • श्रुत • श्रुत • नाभाग • अम्बरीष • सिंधुदीप • अयतायुस • ऋतुपर्ण • सर्वकाम • सुदास • कल्माषपाद • अश्मक • मूलक • शतरथ • वृद्धशर्मन • विश्वसह • दिलीप२ • दीर्घबाहु • रघु • अज • दशरथ • रामचन्द्र • ० • कुश • अतिथि • निषध • नल • नभस • पुण्डरीक • क्षेमधन्वन • देवानीक • अहीनगु • पारिपात्र • दल • उकथ • वज्रनाभ • शंखन • व्युषिताश्व • विश्वसह • हिरण्यनाभ • पुष्य • ध्रुवसन्धि • सुदर्शन • अग्निवर्ण • शीघ्र • मरु • प्रयुश्रुत • सुसन्धि अमर्ष • महाश्वत • अमर्ष • महाश्वत विश्रुवत • वृहदल |
महाभारत पश्चात | |
बहत्क्षय • ऊरुक्षय • बत्सद्रोह • प्रतिव्योम • दिवाकर • सहदेव • ध्रुवाश्च • भानुरथ • प्रतीताश्व • सुप्रतीप • मरुदेव • सुनक्षत्र • किन्नराश्रव • अन्तरिक्ष • सुषेण • सुमित्र • बृहद्रज • धर्म • कृतज्जय • व्रात • रणज्जय • संजय • शाक्य • शुद्धोधन • सिद्धार्थ • राहुल • प्रसेनजित२ • क्षुद्रक • कुलक • सुरथ • सुमित्र • स्वयंभुव मनु संसार के प्रथम पुरुष थे ऐसी हिंदू मान्यता है। सुखसागर के अनुसार सृष्टि की वृद्धि के लिये ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को दो भागों में बाँट लिया जिनके नाम 'का' और 'या' (काया) हुये। उन्हीं दो भागों में से एक से पुरुष तथा दूसरे से स्त्री की उत्पत्ति हुई। पुरुष का नाम स्वयंभुव मनु और स्त्री का नाम शतरूपा था। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव कहलाये। सत्यवादी हरिश्चन्द्र श्री रामचन्द्र जी के पूर्वज सत्यवादी हरिश्चन्द्र का नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है । वे अपनी सत्यवादिता और दानशीलता के कारण प्रसिद्व थे । देवताओं के कहने पर एक बार ऋषि विश्वामित्र उनकी परीक्षा लेने आये । ऋषि ने स्वप्न में उनसे राज्य माँगा । प्रातःकाल उठकर स्वप्न में देखे गये व्यक्ति को राजा ने अपना राज्य दे दिया । विश्वामित्र ने दक्षिणा माँगी तो राजा ने कहा, मैं एक महीने में आपको दक्षिणा दे दूंगा । उनकी पत्नी शैव्या ने कहा, आर्यपुत्र आप मुझे बेचकर दक्षिणा दे दे । रानी को बेचकर आधी दक्षिणा का प्रबन्ध हुआ । इसके बाद राजा ने श्मशान में जाकर चाण्डाल के हाथों अपने आपको बेचकर पूरी दक्षिणा चुका दी । एक दिन उनके पुत्र रोहितशव को साँप ने काट लिया । जिससे वह मर गया । शैव्या अपने मरे हुए पुत्र का दाह संस्कार कराने के लिये अकेली श्मशान गयी । चाण्डाल के सेवक के रुप में वहाँ हरिश्चन्द्र खड़े थे । उन्होंने शैव्या से दाह संस्कार के लिये आधा कफन लेना चाहा तो विश्वामित्र अन्य देवताओं सहित वहाँ आ गये । वे राजा से कहने लगे हे राजन तुम्हारी परीक्षा पूरी हो गयी । तुम दोनों धन्य हो अपना राज्य सँभालो । सब देवताओं ने उन्हें आर्शीवाद दिया जब तक पृथ्वी पर सूर्य और चन्द्रमा रहेंगे आपका यश तब तक संसार में जगमगाता रहेगा । जल छिड़ककर विश्वामित्र ने रोहिताश्व को जीवित कर दिया । चारो ओर महाराज हरिश्चन्द्र और महारानी शैव्या की जयजयकार होने लगी । शिक्षा – मनुष्य को अपनी प्रतिज्ञा का सदैव पालन करना चाहिये । भगीरथ का नाम हमारे देश के इतिहास के शिखर पुरुषों में इसलिए दर्ज है कि वे गंगा को इस धरती पर लाए थे। इस काम के लिए, यानी गंगा इस धारा पर आए, इसमें सफलता पाने के लिए भगीरथ ने सारा जीवन खपा दिया और इस हद तक खपा दिया कि सफलता मिल जाने के बाद उनके नाम के साथ दो चीजें (शायद हमेशा के लिए) जुड़ गई हैं। एक, गंगा को उनके नाम पर भागीरथी नाम मिल गया और दो, दुनिया में हर उस प्रयास को, उस प्रयत्न को, उस कोशिश को भगीरथ प्रयास या भगीरथ प्रत्यन कहा जाने लग गया, जो प्रयास सचमुच में विपुल हो और जिसे किसी खास बड़े सार्वजनिक हित के लिए किया गया हो। श्रीराम विष्णु के अवतार हैं, वे आदिपुरुष हैं, जो मानव मात्र की भलाई के लिए मानवीय रूप में इस धरा पर अवतरित हुए। मानव अस्तित्व की कठिनाइयों तथा कष्टों का उन्होंने स्वयं वरण किया ताकि सामाजिक व नैतिक मूल्यों का संरक्षण किया जा सके तथा दुष्टों को दंड दिया जा सके। रामावतार भगवान विष्णु के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवतारों में सर्वोपरि है। गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार श्रीराम नाम के दो अक्षरों में 'रा' तथा 'म' ताली की आवाज की तरह हैं, जो संदेह के पंछियों को हमसे दूर ले जाती हैं। ये हमें देवत्व शक्ति के प्रति विश्वास से ओत-प्रोत करते हैं। इस प्रकार वेदांत वैद्य जिस अनंत सच्चिदानंद तत्व में योगिवृंद रमण करते हैं उसी को परम ब्रह्म श्रीराम कहते हैं, जैसा कि राम पूर्वतापिन्युपनिषद में कहा गया है- रमन्ते योगिनोअनन्ते नित्यानंदे चिदात्मनि। इति रामपदेनासौ परंब्रह्मभिधीयते। संपूर्ण भारतीय समाज के लिए समान आदर्श के रूप में भगवान रामचन्द्र को उत्तर से लेकर दक्षिण तक सब लोगों ने स्वीकार किया है। गुरु गोविंदसिंहजी ने रामकथा लिखी है। पूर्व की ओर कृतिवास रामायण तो महाराष्ट्र में भावार्थ रामायण चलती है। हिन्दी में तुलसी दास जी की रामायण सर्वत्र प्रसिद्ध है ही, सुदूर दक्षिण में महाकवि कम्बन द्वारा लिखित कम्ब रामायण अत्यंत भक्तिपूर्ण ग्रंथ है। स्वयं गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में राम ग्रंथों के विस्तार का वर्णन किया है- नाना भाँति राम अवतारा। रामायण सत कोटि अपारा॥ समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्यण हिमवानिव। हम राम के जीवन पर दृष्टि डालें तो उसमें कहीं भी अपूर्णता दृष्टिगोचर नहीं होती। जिस समय जैसा कार्य करना चाहिए राम ने उस समय वैसा ही किया। राम रीति, नीति, प्रीति तथा भीति सभी जानते हैं। राम परिपूर्ण हैं, आदर्श हैं। राम ने नियम, त्याग का एक आदर्श स्थापित किया है। राम ने ईश्वर होते हुए भी मानव का रूप रचकर मानव जाति को मानवता का पाठ पढ़ाया, मानवता का उत्कृष्ट आदर्श स्थापित किया। उपनिषदों में राम नाम, ॐ अथवा अक्षर ब्रह्म हैं व इसका तात्पर्य तत्वमसि महावाक्य है- 'र' का अर्थ तत् (परमात्मा) है 'म' का अर्थ त्वम् (जीवात्मा) है तथा आ की मात्रा (ा) असि की द्योतक है। भारतीय जीवन में राम नाम उसी प्रकार अनुस्यूत है जिस प्रकार दुग्ध में धवलता। राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने 'यशोधरा' में राम के आदर्शमय महान जीवन के विषय में कितना सहज व सरस लिखा है- राम। तुम्हारा चरित्र स्वयं ही काव्य है। कोई कवि बन जाए सहज संभाव्य है॥ श्रीराम का चरित्र नरत्व के लिए तेजोमय दीप स्तंभ है। वस्तुतः भगवान राम मर्यादा के परमादर्श के रूप में प्रतिष्ठित हैं। श्रीराम सदैव कर्तव्यनिष्ठा के प्रति आस्थावान रहे हैं। उन्होंने कभी भी लोक-मर्यादा के प्रति दौर्बल्य प्रकट नहीं होने दिया। इस प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में श्रीराम सर्वत्र व्याप्त हैं। कहा गया है- एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट-घट में लेटा। एक राम का सकल पसारा, एक राम है सबसे न्यारा॥ उस उक्ति के द्वारा श्रीराम के चार रूप दर्शाए गए हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम दशरथ-नंदन, अंतर्यामी, सौपाधिक ईश्वर तथा निर्विशेष ब्रह्म। पर इन सबमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र सर्वाधिक पूजनीय है। लव और कुश |
NITIN KUSHWAH, KHANDWA, M. P.
6 years ago
manoj ji bahut hi mahtvpoorn aur gouravshali jankari aap ne net par dali he mujhe lagta he yah hamre samaj ko apni pahchan janne aur hum kya the aur aaj kya he janne me sahayak hoga.
ReplyDeleteritesh kushwah hyderabad.