वन्दे मातरम...!
मेरा भारत, मेरी शान
जहां चित्त भयमुक्त हो, जहां हम गर्व से माथा ऊंचा करके चल सकें;
जहां ज्ञान मुक्त हो;
जहां दिन रात-विशाल वसुधा को खंडों में विभाजित कर छोटे और छोटे आंगन न बनाए जाते हों;
जहां हर वाक्य दिल की गहराई से निकलता हो;
जहां हर दिशा में कर्म के अजस्त्र सोते फूटते हों;
निरंतर बिना बाधा के बहती हो जहां मौलिक विचारों की सरिता;
तुच्छ आचारों की मरू रेती में न खोती हो, जहां पुरूषार्थ सौ-सौ टुकड़ों में बंटा हुआ न हो;
जहां पर कर्म, भावनाएं, आनंदानुभूतियां सभी तुम्हारे अनुगत हों, हे प्रभु, हे पिता
अपने हाथों की कड़ी थपकी देकर उसी स्वातंत्र्य स्वर्ग में इस सोते हुए भारत को जगाओ
जहां ज्ञान मुक्त हो;
जहां दिन रात-विशाल वसुधा को खंडों में विभाजित कर छोटे और छोटे आंगन न बनाए जाते हों;
जहां हर वाक्य दिल की गहराई से निकलता हो;
जहां हर दिशा में कर्म के अजस्त्र सोते फूटते हों;
निरंतर बिना बाधा के बहती हो जहां मौलिक विचारों की सरिता;
तुच्छ आचारों की मरू रेती में न खोती हो, जहां पुरूषार्थ सौ-सौ टुकड़ों में बंटा हुआ न हो;
जहां पर कर्म, भावनाएं, आनंदानुभूतियां सभी तुम्हारे अनुगत हों, हे प्रभु, हे पिता
अपने हाथों की कड़ी थपकी देकर उसी स्वातंत्र्य स्वर्ग में इस सोते हुए भारत को जगाओ
'गीतांजलि' में रबीन्द्र नाथ टैगोर की रचना
हम अपने देश की स्वतंत्रता की 63वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। आपको इस अवसर पर ढेरों शुभकामनाएं।--
अमितसिंह कुशवाह,
इंदौर, (भारत)
Mobile No. 093009-39758
कमाल कि पंक्तियाँ है, बहुत ही सुन्दर सन्देश देती हुई खूबसूरत रचना!
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteसादर
समीर लाल